Wednesday 11 July 2018

निकुम्भ वंश उत्पति और इतिहास ( Nikhumbh rajput history )

Nikhumbh rajput history:-

वंश:-           सूर्य वंश
गोत्र:-          वशिष्ठ,
प्रवर तीन:-  अत्रि, वशिष्ठ,शांकृति
कुल देवी:-  कालिका,
वेद:-           यजुवेद
शाखा:-       वाजसनेयी,
सूत्र:-          पास्कर ग्रह सूत्र है ।
राजघानी:-  आभानेर
राज्य:-        मांडलगढ़,
निशान:-     सूर्य का चिह्न
शस्त्र:-        तलवार.
नदी :-        सरयू है.

निकुम्भ वंश की प्रसिद्धि सूर्य वंशी राजा निकुम्म के नाम से है, जो कि इक्ष्वाकु के १३ वें वंशधर थे। प्राचीन वंश होने के कारण इस वंश की प्रसिद्धि समस्त भारतीय इतिहास में हैं। गहिलौतों से पहिले मण्डलगढ़ के स्वामी निकुम्म ही थे। निकुम्भ वशी राजा बाहुमान थे। वह ‘हहय" वंशीय राजा (कलचुरी) से परास्त होकर सिन्घ नदी के किनारे जा बसे. और एक ऋषि की कृपा से छूटा हुआ राज्य फिर प्राप्त कर लिया।
सूर्य वंशी राजा निकुम्भ के वंश में मान्धाता, भागिरथ, अज, दशरथ और श्री रामचन्द्रजी का अवतार (औतार) हुआ था। इन्हीं के वश में कई पीढ़ी बाद विक्रम का पुत्र भास्कर भट्ट उसका पुत्र मनोहर भट्ट उसका पुत्र महेश्वरा चार्य, उनका पुत्र सिद्धान्त शिरोमणि प्रसिद्धि भास्कराचर्या उसका पुत्र लक्ष्मीधर उसका पुत्र चंगदेव गिरि के राजा सिंधण के दरबार का मुख्य ज्योतिषी था। चंगदेव ने अपने दादा के सिद्धान्त को पूरा करने के लिए पोतिषि की एक पाठशाला स्थापित की थी। सोई देव का छोटा भाई हेमाद्र देव था, जो उसका उत्तराधिकारी हुआ। खानदेश के अलावा राजपूताने में भी मंडलगढ़, अलवर और उत्तरी जयपुर का कि श्री निकुम्भ राजा के द्वारा बनवाये गये थे। यहां के इलाकों को मुसलमानों द्वारा छीन लेने पर भी यह अलवर के स्वामी बने रहे । अब इनका कोई बड़ा राज्य नहीं है केवल जमींदारियाँ शेष रह गई हैं । हरदोई इलाके में इनका एक ठिकाना (जमीदारी) है जो अपना मूल ठिकाना अलवर बताते हैं, अवध में भी ताल्लुकेदार निकुम्भ बंशी हैं, इनको रघुवंशी भी कहते हैं। इनकी एक शाखा सिरनेत नाम से प्रसिद्ध है। दूसरी कटहरिया है।

श्रीनेत (सिरनेत) rajput history:-

श्रीनेत प्रसिद्ध निकुम्ष वंश की शाखा है, और यह लोग मानते भी हैं कि गोरखपुर के उत्तर में एक कपिलवस्तु नाम की रियासत थी। यहां के राजा दीर्घवायु थे, जो कौशलपुर के राजा बाहुसुकेत के समकालीन थे । इस राजा ने कपिलवस्तु को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था। इसके बाद राजा अशोक ने जीतकर उस राजा को वि० १६७ में वहां से निकाल दिया, और यह लोग तितर बितर होकर जहां तहां बस गये । उस समय में वशिष्ठजी बद्रीनारायण धाम में थे, इस वंश के लोग भाग कर हिमालय की तराई में चले गए जो वर्तमान में टिहरी राज्य कहलाता है । इसकी राजधानी श्रीनगर है। कहते हैं कि उस वंश के राजा ने कभी भी देसी (यवन) दरबार में जाकर सिर नहीं झुकाया था। इस कारण से इस बंश की उपाधि श्रीनेत या सिरनेत हुई है ।
कप्तान विलंक साहब लिखते हैं कि श्रीनेत शब्द उपाधि से सम्बन्वित है । दीर्घ वायु राजा की २५वीं पीढ़ी में सब कुछ हुआ था । उसके बड़े लड़के का नाम सकुन था । राजा मझोंली दिग्यविजय ने अपनी लड़की चन्द्रप्रभा का विवाह इसके साय करके १५० कोस का राज्य उसको दानस्वरूप दे दिया था, उसके दो पुत्र अमरजीत व जयजीत थे । अमरजीत रुद्रपुर के राजा और जयजोत श्रीनगर के राजा हो गये, क्योंकि श्रीनगर के सब राजा स्वर्गवासी हो चुके थे ।
अमरजीत को २६वीं पीढ़ी में लवंग (घबंग) राजा हुए। उनके तोन पुत्र महिमा, महिलोचन और चन्द्रपाल थे । जब श्रीनगर की गद्दी खालो हुई तो महिमा अपने छोटे भाई चन्द्रपाल के साथ श्रीनगर चले गये । महिलोचन रुद्रपुर के राजा हो गए । इनको २०वीं पीढ़ी में भगवन्तसिंह राजा हो गये, उनके भी तीन पुत्र थे । उन्होंने १५० कोस का राज्य इस प्रकार बाँट लिया।
 रणधीरसिंह को ८७ कोस का राज्य मितासो वह सतासी' नाम से प्रसिद्ध है । जयसिंह को ४२ कोस का हिस्सा मिला, वह ‘बांसी" नाम से प्रसिद्ध है, और जगबीरसिह को २१ कोस का इलाका मिला, जो "उनवल" नाम से प्रसिद्ध है । फिर कई पीढ़ी बाद चन्द्रपाल के वंशज मकरन्दसिह, किसी बस श्रीनगर से गोरखपुर आये और इन रियासतों में घूमते फिरते रहे । बाद में इनकी रियासत में और गाँव मिस गये । जब इनका परिवार बढ़ा तो और जबरदस्ती अनेक गाँव अपने राज्य में मिला लिये । यही लोग बांस गाँव के बाबू" नाम से वर्तमान समय में प्रसिद्ध हैं । ज्येष्ठ पुत्र जो 'सत्तासी' का राजा था, उसका राज्य १८५७ ई० के गदर में राजद्रोह के कारण चला गया था। इस वंश की रियासत बांसी, बस्ती जिलों में व 'उम्नोला" गोरखपुर जिलों में और छोटे छोटे । वालुक्केदार अवध जिलों में पाये जाते हैं ।


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