Friday 13 July 2018

रघुवंशी और बेंस राजपूतो का इतिहास (raghuvanshi or bensh rajput history)

Raghuvanshi (रघुवंशी) rajput history:-

इस प्राचीन वंश सूर्यवंश में दशरथजी से पहिले प्रभावशाली राजा रघु हुए थे । इन्हीं के वंशज रघुवंशी" कहलाए हैं। रामायण में लिखा है कि जिस समय राजा रामचन्द्रजी जनकपुर में विदेह राजा जनक के यहाँ रंगभूमि में बैठे थे उस समय' राजा जनक ने व्याकुल होकर कहा था, कि धनुष को तोड़ना तो अलग रहा, उसको तिल भर कोई हिला न सका। मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि इस पृथ्वी पर कोई क्षत्री वीर शेष नहीं है। इस मर्म भेदी कटु बचन को सुनकर श्री लक्ष्मणजी से रहा न गया। वे गर्जकर बोले और कहा
रघुशिन में जहां कोई होई।
से हि समाज असि कहि न कोई ॥
कही जनक जस अनुचित वानी।
विद्यमान रकल मणि जानी ॥
इससे स्पष्ट होता है कि उस समय श्री रामचन्द्रजी समकालीन सूर्यवंशीयगण अपने को रघुवंशी ही कहकर सम्बोधित करते थे कालक्रम से इस वंश का इतिहास लोप हो गया है । रघुवंशियों की रियासत बुन्देलखण्ड में बरोद, कोचर के राजा इसी वंश के हैं । रघुवंशी परगना मोतीगिर (अवध) में इनकी रियासत है । बिहार उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं । शादी सम्बन्ध सब क्षत्रियों में ही होता है ।

Bensh बेंस rajput history:-

यह सूर्यवंश है । गौन-भारद्वाज । प्रवर-3 भारद्वाज बादस्पत्य, अह्रिस । वेद-अजुर्वेद । शाखा-वाजसनेयी । सूत्र
पारस्कर ग्रह्य सूत्र है । कुल देवी-कालिका जी। इष्ट:- शिवजी है । झन्डा आस्मानी (नीला) चिन्ह नाग से युक्त है । यह अपने को सूर्यवंशीय मानते हैं, इस वंश को ३६ कुली राजवंशों की सूची में स्थान मिला है । बीकानेर की वंशावली में इन्हें। सूर्यवंशीय माना है। इस वंश के असंख्य लोग पाये जाते हैं। गंगाजी, यमुनाजी के बीच में इनका प्रदेश वैसवाड़ा प्रसिद्ध है। जाति भास्कर में भी इनको सूर्य वंशीय माना है । सम्बत १३१२वीं की छपी वंशावली बंगला इतिहास में लिखा है कि जब विक्रमपाल सन्यासी दिल्ली पर शासन कर रहा था । उस समय त्रलोकचन्द्र वेस राजा ने कई वर्ष तक शासन नहीं दिया था, तब दिल्ली के राजा विक्रमपाल सेना के साथ प्रतिष्ठानपुर राजा त्रेलोकचंद पर चढ़ाई करदी। युद्ध में दिल्ली की सेना मारी गई और दिल्ली का शासन लोकचन्द्र के हाथों में आ गया था। ।
इसके वश में निम्न राजाओं ने राज्य किया था.
भ्रलोकचन्द्र २ वर्ष ३ माह, विक्रमचन्द्र २२ वर्ष ३ माह, कीति नन्द्र ४ वर्ष, रामचन्द्र १४ वर्ष ११ माह, अधरचन्द्र, कृपाल चन्द्र, भोम चन्द्र, बोध चन्द्र, गोविन्दचन्द्र तथा प्रमादेवी सहित कुल १३८ वर्ष ७ माह तक राध्य किया था ।
जब गोविन्दचन्द्र सिंह के निःसन्तान होने पर मंत्रियों ने प्रेमदेवी को सिंहासन पर बैठा दिया। वह एक वर्ष शासन करने के बाद शान्ति (मर) हो गई।  जेम्स टांड़ राजस्थान के सातवे प्रकरण टिप्पणी २४७ पृष्ठ २४८ में लिखा है कि बैस बंशी राजाओं के तामपत्र बाणभट्ट द्वारा रचित हर्ष चरित्र" और चीनी यात्रा होनसांग के 'श्री ' सफरनामा में मिलता है । जिसने सारे भारतवर्ष को विजय किया था। इसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। और प्रचार का काम अपने हाथों में ले लिया था, इनके मरने के बाद कोई। इतिहास नहीं मिलता है । यह लोग शुद्ध क्षेत्री हैं । बौद्ध धर्म
ग्रहण करने के कारण इनकी प्रतिष्ठा कम हो गई थी । इनकी शाखा प्रलोकचन्द्री, प्रतिष्ठानपुरी तथा कुम्भी नरबरिया है ।

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